Sunday 21 June 2015

वृद्ध होते पिता....

वक़्त के साथ वृद्व होते पिता,
आप को देखकर,
सभी घडियां तोड़ने का मन करता है,
ये जो छोटी मुश्किलें,
आपके बड़े जीवट को पस्त करने लगी है,
अपने सब सपनों मे,
आपकी उम्र सहेजने का मन करता है,
अब बहुत से काम मैं कर सकता हूँ,
जो आप नहीं कर पाते,
तो ये सारी कामयाबी फेंकने का मन करता है,
आप से छिपकर अब कुछ बातें
आहिस्ता होती है,
घर मे कुछ हँसी ठहाके
आहिस्ता होते है,
आओ मिलकर खूब हँसे
हँसते हँसते आपकी गोदी मे सिर रखकर,
घंटो रोने का मन करता है,
हर एक कहानी झूंठी है,
सब दादी नानी झूंठी है,
सच तो है बस,
जो आप बोलो और मैं सुन लूँ,
एक नई कहानी सुनते सुनते,
हर रात आपके पाँव दबाने का मन करता है,
आप चुके नहीं हो,
बस रुक गए हो,
आप ढले नहीं हो,
बस थक गए हो,
आप जागो तो सवेरा है,
आप सो जाओ तो अँधेरा है,
आप मे अब भी शक्ति है,
जीतने की उड़ने की,
आप मे अब भी शक्ति है,
आसमान रचने की,
कभी घूमने का मन करे तो बताना,
आप के साथ पैदल,
चाँद तक चलने का मन करता है।।

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