Monday 3 April 2023

लोक लुभावन नहीं, महा विध्वंसकारी RTH

 *जनता से अपील*


१. प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में मुफ्त दवा, मुफ्त जांच और मुफ्त इलाज पहले से ही लागू है। निजी अस्पताल भी चिरंजीवी और RGHS सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं में बेहद कमतर सरकारी दरों पर आम जनता को इलाज उपलब्ध करवा रहे हैं। इसे में इस प्रदेश को अलग से "राइट टू हेल्थ" अर्थात RTH कानून की कोई आवश्यकता नहीं है। राज्य सरकार मात्र चुनावी रणनीति के तहत यह अधिनियम लाकर जनता के वोट भुनाना चाहती है। इस अधिनियम में चिकित्सको के व्यवहारिक हितों की अनदेखी की गई है।


२. हर पेशे मे दो क्षेत्र अपनी सेवाए देते हैं, एक सरकारी और दूसरा निजी। सरकारी क्षेत्र का दायित्व जरूरत मंद जनता को उन सेवाओ को निःशुल्क रूप से उपलब्ध कराने का होता है। इस हेतु उस सेवा से जुड़े सारे मानव-संसाधन, मूलभूत सेवाएं आदि की व्यवस्था सरकारी पैसे (अर्थात जनता के टैक्स के पैसे) से की जाती है। जहां सरकार उक्त सेवाओं को उपलब्ध कराने अथवा उनका प्रबंधन करने में दिक़्क़त अनुभव करती है, वहाँ वह इस हेतु निजी क्षेत्र का आह्वान करती है।


३. निजी क्षेत्र अपने निजी पैसे से या बैंक से लिए हुए ऋण के द्वारा उक्त सेवाऐं उपलब्ध कराने हेतु मूलभूत सुविधाएं और मानव-संसाधन के वेतन आदि खर्चो की व्यवस्था करता है। उसके पास उक्त व्यवस्थाओं को करने के लिए कोई सरकारी फंड नहीं होता।


४. यह सर्व-विदित सत्य है कि निजी क्षेत्र की सेवाओ की गुणवत्ता और प्रबंधन सरकारी क्षेत्र से बेहतर और सक्षम होता है। यही कारण है कि जनता निजी क्षेत्र की सेवाओं को अधिक उपयोग मे लेना पसंद करती है ।


५. पिछले सत्तर सालों में सरकारो द्वारा स्वास्थ्य क्षेत्र को सदा कम अहमियत दी गई है और अपनी इस नाकामयाबी को छुपाने के लिए सरकार ने निजी क्षेत्र का सहारा लिया, जिस कारण आज स्वास्थ्य क्षेत्र की सत्तर प्रतिशत सेवाएं और अन्य पैरा-मेडिकल सेवाये निजी क्षेत्र द्वारा दी जा रही हैं


६. निजी क्षेत्र द्वारा प्रदेश के दूर-दराज़ के ग्रामीण क्षेत्रों तक स्वास्थ्य सेवाओं की उन्नत तकनीक पहुँचाई गई है, जिस कार्य मे सरकार आज़ादी के सत्तर साल बाद भी विफल रही है।


७. यह सर्वविदित है कि स्वास्थ्य क्षेत्र की उन्नत तकनीक की व्यवस्था करने मे निजी क्षेत्र को अपने स्वयं के निजी धन का उपयोग करना पड़ता है, जिस संदर्भ मे सरकार द्वारा उसे भूमि, निर्माण, बिजली, ऋण आदि मे कोई रियायत नहीं दी जाती है ।


८. इसके बावजूद भी स्वास्थ्य क्षेत्र में कार्य कर रहे निजी क्षेत्र पर क़रीब 54 कठोर क़ानून लागू होते है, जिनकी पालना में निजी अस्पतालों को प्रति-वर्ष लाखों रुपयों का भुगतान करना पड़ता है, जिसकी वजह से निजी अस्पतालों में इलाज महँगा होता जाता है। इसके अलावा गुणवत्तापूर्ण इलाज में महँगी मशीने की आवश्यकता होती है, जिसमे करोड़ों रुपए का खर्चा होता है। इन सब में सरकार निजी स्वास्थ्य क्षेत्र को कभी कोई रियायत उपलब्ध नहीं करवाती। इसके बावजूद भी राजस्थान के निजी स्वास्थ्य सेवाओ की दरें देश में अन्य राज्यों की तुलना में काफ़ी कम है ।


*"राइट टू हेल्थ" (RTH) कानून का चिकित्सकों द्वारा विरोध क्यों? क्यों चिकित्सकों के लिए यह है "काला कानून"?*


- निःशुल्क स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराना सरकार का दायित्व है। सरकार पिछले सत्तर वर्षों में, स्वास्थ्य क्षेत्र में, अपनी विफलता का ठीकरा निजी क्षेत्र पर ‘राइट टू हेल्थ (RTH) अधिनियम के रूप में थोपना चाहती है ।

- RTH अगर लागू किया गया तो हर निजी अस्पताल/क्लिनिक को हर मरीज़ की आपातकालीन स्थिति अर्थात इमरजेंसी मे इलाज मुफ़्त में देना होगा, क्या ये व्यावहारिक है ?

- हर मरीज़ की छोटी से छोटी पीड़ा भी उसके लिए इमरजेंसी होती है । RTH में इमरजेंसी की स्पष्ट व्याख्या नहीं की गई है । यदि यह बिल लागू हुआ तो हर व्यक्ति अपनी छोटी से छोटी पीड़ा को इमरजेंसी का नाम देकर किसी भी निजी चिकित्सक/अस्पताल से किसी भी समय मुफ़्त में इलाज लेने के लिए विवाद करेगा । इस कारण फिर कोई भी मरीज़ नियमित ओपीडी में चिकित्सक को न दिखाकर, इमरजेंसी बताकर हर बीमारी को मुफ़्त में दिखाने का प्रयास करेगा, जिसके कारण अस्पतालों का खर्चा निकलना ही मुश्किल हो जाएगा और निजी अस्पताल बंद होने की कगार पर पहुँच जाएँगे ।

- आए दिन इस कारण होने वाले मरीजों के इस विवाद से निजी अस्पतालों में नियमित रूप से मरीज और चिकित्सकों का टकराव आम हो जाएगा, मरीजों द्वारा की जाने वाली झूठी-सच्ची शिकायतों में इजाफा होगा।

- चिकित्सकों के लिए यह अधिनियम एक अन्य प्राधिकरण उपस्थित करेगा, जो पुनः के नवीन इंस्पेक्टरराज और वसूली का ज़रिया इनपर थोपेगा। इससे निजी अस्पतालों का संचालन बेहद मुश्किल हो जाएगा।

- उक्त प्राधिकरण के निर्णय के विरुद्ध संबंधित चिकित्सकों को न्यायालय मे अपील करने से इस अधिनियम में वंचित रखा गया है। यह अपने आप मे पूर्णतयः असंवैधानिक है।

- इस संदर्भ में कही पर भी निजी चिकित्सकों की मुफ़्त मे दी जाने वाली सेवाओ के पुनर्भुगतान की सरकार द्वारा कोई भी साफ़ रूप-रेखा का वर्णन नहीं किया गया है।

- यदि यह बिल लागू हुआ तो निजी चिकित्सा क्षेत्र धीरे-धीरे प्रदेश से समाप्त हो जाएगा, निजी चिकित्सक और अस्पताल संचालक पड़ोस के राज्यों में पलायन करने को मजबूर हो जाएँगे और स्वास्थ्य का संपूर्ण भार सरकारी स्वास्थ्य क्षेत्रों पर बढ़ जाएगा। अतः यह बिल जनता के हित में भी नहीं है ।

- आप सभी ख़ुद बताइए की यें पड़ोस के राज्यों में निजी अस्पताल और चिकित्सा सेवाये इतनी उत्तम कैसे है, क्यूकि वहाँ पर सरकार द्वारा निजी क्षेत्र को मुफ्त सेवाएं देने को मजबूर नहीं किया जाता।

- गुणवत्तापूर्ण इलाज हेतु उत्तम और आधुनिक ताकनिक और दवाईयो का उपयोग होता है, जो निःशुल्क इलाज की बाध्यता के अधिनियम के कारण निजी अस्पताल मरीज़ को उपलब्ध नहीं करा पायेंगे।

- सरकार ने RTH के लिए बजट का प्रावधान मात्र ₹ 1.70 प्रति मरीज का रखा है। क्या इतनी कमतर धनराशि से किसी मरीज का व्यवहारिक इलाज किया जा सकता है?

- RTH के अधिनियम बनने के बाद जब इमरजेंसी के नाम पर मरीज अपनी छोटी छोटी बीमारियों के मुफ्त इलाज के लिए चिकित्सकों को मजबूर करेंगे, तो जो बीमारियां वास्तविक इमरजेंसी हैं, जैसे हृदय रोग, जिगर रोग, मस्तिष्क रोग आदि, उसमे चिकित्सक उपयुक्त समय और संसाधन नहीं दे पाएंगे।

-RTH बिल में चिकित्सकों के दायित्वों का बखान है पर मरीजों और उनके परिजनों के संबंध में किन्हीं जिम्मेदारियों का वर्णन नहीं किया गया है। आज आए दिन निजी चिकित्सक/अस्पताल मौताणा, असंतुष्ट मरीजों द्वारा हिंसा, जन प्रतिनिधियों की दादागिरी से परेशान हैं। अधिनियम के आ जाने पर ये दिक्कतें हर दिन और बढ़ेंगी।

-बिल में इलाज के पुनर्भुगतान की समय सीमा का वर्णन नहीं है और देरी से भुगतान पिछली चिरंजीवी स्वास्थ्य योजना में गंभीर परेशानी रही है।

-एक बार अधिनियम आ जाने के बाद सरकार, वोटों की लालच में, उसमे मन माफिक कभी भी कोई ऐसा प्रावधान जोड़ सकती है जिससे भविष्य में चिकित्सकों को पेशेवर प्रताड़ना का शिकार बनना पड़े। इसलिए यह बिल नहीं आना चाहिए।

1 comment:

  1. The public is being kept in the dark and they don't understand it. It is very important to share awareness, the truth, not the "facts" forged by government for electorial purposes

    ReplyDelete