Wednesday, 30 July 2014

भगवान श्री राम का वंश

भगवान राम का वंश --
ब्रह्मा की उन्चालिसवी पीढ़ी में श्रीराम का जन्म हुआ.

हिंदू धर्म में राम को विष्णु का सातवाँ अवतार माना जाता है।
वैवस्वत मनु के दस पुत्र थे - इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त,करुष, महाबली, शर्याति और पृषध।

राम का जन्म इक्ष्वाकु के कुल में हुआ था।

जैन धर्म के तीर्थंकर निमि भी इसी कुल के थे।

मनु के दूसरे पुत्र इक्ष्वाकु से विकुक्षि,
निमि और दण्डक पुत्र उत्पन्न हुए।
इस तरह से यह वंश परम्परा चलते-चलते
हरिश्चन्द्र, रोहित, वृष, बाहु और सगरतक पहुँची।
इक्ष्वाकु प्राचीन कौशल देश के राजा थे और इनकी राजधानी अयोध्या थी।
रामायण के बालकांड में गुरु वशिष्ठजी द्वारा राम के कुल का वर्णन किया गया है जो इस प्रकार है
१ - ब्रह्माजी से मरीचि हुए।

२ - मरीचि के पुत्र कश्यप हुए।

३ - कश्यप के पुत्र विवस्वान थे।

४ - विवस्वान के वैवस्वत मनु हुए.वैवस्वत मनु के समय जल प्रलय हुआ था।

५ - वैवस्वतमनु के दस पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वाकु था।
इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुलकी स्थापना की।

६ - इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुए।

७ - कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था।

८ - विकुक्षि के पुत्र बाण हुए।

९ - बाण के पुत्र अनरण्य हुए।

१०- अनरण्य से पृथु हुए

११- पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ।

१२- त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए।

१३- धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था।

१४- युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए।

१५- मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ।

१६- सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित।

१७- ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए।

१८- भरत के पुत्र असित हुए।

१९- असित के पुत्र सगर हुए।

२०- सगर के पुत्र का नाम असमंज था।

२१- असमंज के पुत्र अंशुमान हुए।

२२- अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए।

२३- दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए।

भगीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतरा था.भगीरथ के पुत्र ककुत्स्थ थे।

२४- ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए।

रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने केकारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया,तब राम के कुल को रघुकुलभी कहा जाता है।

२५- रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए।

२६- प्रवृद्ध के पुत्र शंखण थे।

२७- शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए।

२८- सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था।

२९- अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग हुए।

३०- शीघ्रग के पुत्र मरु हुए।

३१- मरु के पुत्र प्रशुश्रुक थे।

३२- प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुए।

३३- अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था।

३४- नहुष के पुत्र ययाति हुए।

३५- ययाति के पुत्र नाभाग हुए।

३६- नाभाग के पुत्र का नाम अज था।

३७- अज के पुत्र दशरथ हुए।

३८- दशरथ के चार पुत्र राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हुए।

इस प्रकार ब्रह्मा की उन्चालिसवी पीढ़ी में श्रीराम का जन्म हुआ.

श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम्।
नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम।

कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम। पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम।

भजु दीन बंधू दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम।
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम ।

सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभुषणं।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर - धुषणं।

इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम।
मम हृदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम।

मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।
करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।

एही भाँती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।
तुलसी भवानी पूजी पूनी पूनी मुदित मन मन्दिर चली।

जानी गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाए कहीं।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फ़र्क़न लगे।

जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे ।

राम से बड़ा राम का नाम,,,,,,

Tuesday, 29 July 2014

अवधूत दत्तात्रेय के 24 गुरु

अवधूत दत्तात्रेय के 24 गुरु ..

परम तेजस्वी अवधूत दत्तात्रेय का दर्शन पाकर राजा  यदु ने अपने को धन्य माना और विनयावनत होकर पूछा --" आपके शरीर,वा णी और भावनाओं से प्रचंड तेज टपक रहा है ! इस सिद्धावस्था को पहुँचाने वाला ज्ञान आपको जिन सदगुरु द्वारा मिला हो उनका परिचय मुझे देने का अनुग्रह कीजिये "!

अवधूत ने कहा --"राजन!सदगुरु किसी व्यक्ति विशेष को नहीं मनुष्य के गुणग्राही दृष्टिकोण को कहते हैं।

विचारशील लोग सामान्य वस्तुओं और घटनाओं से भी शिक्षा लेते और अपने जीवन में धारण करते हैं ! अतएव उनका विवेक बढ़ता जाता है ! यह विवेक ही सिद्धियों का मूल कारण है !अविवेकी लोग तो ब्रह्मा के समान गुरु को पाकर भी कुछ लाभ उठा नहीं पाते !इस संसार में दूसरा कोई किसी का हित साधन नहीं करता ,उद्धार तो अपनी आत्मा के प्रयत्न से ही हो सकता है !मेरे अनेक गुरु हैं,जिनसे भी मैंने ज्ञान और विवेक ग्रहण किया है  उन सभी को मै अपना गुरु मानताहूं !

पर उनमे 24 गुरु प्रधान हैं, ये हैं

1. पृथ्वी (धरती )
सर्दी ,गर्मी ,बारिश को धेर्यपूर्वक सहन करने वाली ,लोगों द्वारा मल -मूत्र त्यागने और पदाघात जैसी अभद्रता करने पर भी क्रोध ना करने वाली ,अपनी कक्षा और मर्यादा पर निरंतर,नियत गति से घूमने वाली पृथ्वी को मैंने गुरु माना है।

2.वायु (हवा)
अचल (निष्क्रिय ) होकर ना बेठना ,निरंतर गतिशील रहना,संतप्तों को सांत्वना देना ,गंध को वहन तो करना पर स्वयं निर्लिप्त रहना ! ये विशेषताएं मैंने पवन में  पाई और उन्हें सीख कर उसेगुरु माना.

3.आकाश (गगन)
अनंत और विशाल होते हुए भी अनेक ब्रह्मांडों को अपनी गोदी में भरेरहने वाले,ऐश्वर्यवान होते हुएभी रंच भर अभिमान ना करने वाले आकाश को भीमैंने गुरु माना  है !

4.जल (पानी)
सब को शुद्ध बनाना ,सदा सरलऔर तरल रहना ,आतप को शीतलता में परिणित करना ,वृक्ष,वनस्पतियों तक को जीवन दान करना,समुद्र का पुत्र होते हुए भी घर घर आत्मदान के लिए जा पहुंचना -इतनी अनुकरणीय महानताओ के कारण जल को मैंने गुरु माना

5.यम
वृद्धि पर नियंत्रण करके संतुलन स्थिर रखना,अनुपयोगी को हटा देना ,मोह के बन्धनोंसे छुड़ाना और थके हुओं को अपनी गोद मेंविराम देने के आवश्यक कार्य में संलग्न यम  मेरे गुरुहैं !

6.अग्नि
निरंतर प्रकाशवान रहने वाली , अपनी उष्मा को आजीवन बनाये रखने वाली , दवाव पड़ने पर भी अपनी लपटें उर्ध्वमुख ही रखने वाली ,बहुत प्राप्त करके भी संग्रह से दूर रहने वाली,स्पर्श करने वाले को अपने रूप जैसा ही बनालेने वाली ,समीप रहनेवालों को भी प्रभावित करने वाली अग्नि मुझे आदर्श लगी ,इसीलिए उसे गुरुवरण कर लिया !

7.चन्द्रमा
अपने पास प्रकाश ना होने पर भीसूर्य से याचना कर पृथ्वी को चांदनी का दान देते रहने वाला परमार्थी चन्द्रमा मुझे सराहनीय लोक-सेवक लगा !         विपत्ति में सारी  कलाएं क्षीण हो जाने पर भी निराश होकर ना बेठना  और फिर आगे बढ़ने के साहस को बार-बार करते रहना  धेर्यवान चन्द्रमा का श्रेष्ठ गुण कितना उपयोगी है ,यह देख कर मैंने उसे अपना गुरु बनाया

8.सूर्य
नियत समय पर अपना नियत कार्य अविचल भाव से निरंतर करते रहना ,स्वयं प्रकाशित होना और दूसरों को भी प्रकाशित करना,नियमितता ,निरंतरता,प्रखरता और तेजस्विता के गुणों ने ही सूर्य को मेरा गुरु बनाया .

9.कबूतर
पेड़ के नीचेबिछे हुए जाल में पड़े दाने को देखकर लालची कबूतर आलस्यवश अन्यत्र ना गया और उतावली में बिना कुछ सोचे विचारे  ललचा गया और जाल में फँस पर अपनी जान गवां बैठा ! यह देख कर मुझे ज्ञान हुआ की लोभ से ,आलस्य से और अविवेक से पतन होता है ,यह मूल्यवानशिक्षा देने वाला कबूतर भी मेरा गुरु ही तो है

10.अजगर
शीत ऋतु में अंग जकड जाने और वर्षा के कारण मार्ग अवरुद्ध रहने के कारण भूखा अजगर मिटटी खा कर काम चला रहा था और धेर्य पूर्वक दुर्दिन को सहन कर रहा था ! उसकी इसी सहनशीलता ने उसे मेरा गुरु बना दिया !

11.समुद्र (सागर)
नदियों द्वारा निरंतर असीम जल की प्राप्ति होते रहने पर भी ,अपनी मर्यादा से आगे ना बढ़ने वाला,रत्न राशि के भंडारों का अधिपति होने पर भी नहीं इतराने वाला , स्वयं खारी होने पर भी बादलों को मधुर जल दान करते रहने वाला  समुद्र भी मेरा गुरु है !

12.पतंगा
लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अपने प्राणों की परवाह न करके अग्रसर होने वाला पतंगा  जब दीपक की लौ पर जलने लगा तो आदर्श के लिए,अपने लक्ष्य के लिए उसकी अविचल निष्ठा ने मुझे बहुत प्रभावित किया ! जलतेपतंगे को जब मैने गुरु माना तो उसकी आत्मा ने कहा इस नश्वर जीवन को महत्त्व ना देते हुए अपने आदर्श और लक्ष्य के लिए सदा त्याग करने को उद्धत रहना चाहिये !.

13.मधुमक्खी
फूलों का मधुर रस संचय कर दूसरों के लिए समर्पित करने वाली मधुमक्खी ने मुझे सिखाया की मनुष्य को स्वार्थी नहीं परमार्थी होना चाहिये.

14.भौंरा-
राग में आसक्त भोंरा अपना जीवन -मरण न सोच कर कमल पुष्प पर ही बैठा  रहा ! रात को हाथी ने वो पुष्प खाया तो भोंरा भी मृत्यु को प्राप्त हुआ ! राग  ,मोह में आसक्त प्राणी किस प्रकार अपने प्राण गँवाता है ! अपने गुरु भोंरे से यह शिक्षा मैंने ली !

15.हाथी
कामातुर हाथी मायावी हथनियों द्वारा प्रपंच में फँसा  कर बंधन में बाँध दिया गया  और फिर आजीवन त्रास भोगता रहा ! यह देख कर मैंने वासना के दुष्परिणाम को समझा और उस विवेकी प्राणी को भी अपना गुरु माना ?

16.हिरण (मृग)
कानों के विषय में आसक्त हिरन को शिकारियों के द्वारा पकडे जाते और जीभ की लोलुप मछली को मछुए के जाल में तड़पते देखा तो सोचा की इंद्रियलिप्सा के क्षणिक आकर्षण में जीव का कितना बड़ा अहित होता है ,इससे बचे रहना ही बुद्धिमानी है! इस प्रकार ये प्राणी भी मेरे गुरु ही ठहरे !

17.पिंगला वेश्या
पिंगला वेश्या जब तक युवा रही तब तकउसके अनेक ग्राहक रहे ! लेकिन वृद्ध होते ही वे सब साथ छोड़  गए ! रोग और गरीबी ने उसे घेर लिया ! लोक में निंदा और परलोक में दुर्गति देखकर मैने सोचा की समय चूक जाने पर पछताना ही बाकी रह जाता है ,सो समय रहते ही वे सत्कर्म कर लेने चाहिये जिससे पीछे पश्चाताप न करना पड़े ! अपने पश्चाताप से दूसरों को सावधानी का सन्देश देने वाली पिंगला भी मेरे गुरु पद पर शोभित हुई !

18.काक (कौआ )
किसी पर विश्वास ना करके और धूर्तता की नीति अपना कर कौवा घाटे  में ही रहा ,उसे सब का तिरस्कार मिला और अभक्ष खा कर संतोष करना पड़ा !यह देख कर मेने जाना की धूर्तता और स्वार्थ की नीति अंतत हानिकारक ही होती है ! यह सीखाने  वाला कौवा भी मेरा गुरु ही है !

19.अबोध बालक-
राग ,द्वेष,चिंता ,काम ,लोभ ,क्रोध से रहित जीव कितना कोमल ,सोम्यऔर सुन्दर लगता है कितना सुखी और शांत रहता है यह मैंने अपने नन्हे बालक गुरु से जाना !

20.स्त्री-
एक महिला चूडियाँ पहने धान कूट रही थी,चूड़ियाँ आपस में खड़कती  थीं ! वो चाहती  थी की घर आये मेहमान को इसका पता ना चले इसलिए उसने हाथों की बाकी चूड़ियाँ उतार दीं और केवल एक एक ही रहने दी तो उनका आवाज करना भी बंद हो गया !यह देख मेने सोचा की अनेक कामनाओ के रहते मन में संघर्ष उठते हैं ,पर यदि एक ही लक्ष्य नियत कर लिया जाए तो सभी उद्वेग शांत हो जाएँ! जिस स्त्री से ये प्रेरणा  मिली वो भी मेरी गुरु ही तो है !

21.लुहार -
लुहार अपनी भट्टी में लोहे के टूटे फूटे टुकड़े गरम कर के हथोड़े की चोट से कई तरह के औजार बना रहा था ! उसे देख समझ आया की निरुपयोगी और कठोर प्रतीत होने वाला इन्सान भी यदि अपने को तपने और चोट सहने कीतैयारी कर ले तो उपयोगी बन सकता है !

22.सर्प (सांप)-
दूसरों को त्रास देता है और बदले में सबसे त्रास ही पाता  है यह शिक्षा देने वाला भी मेरा गुरु ही है जो यह बताता है की उद्दंड ,आतताई, आक्रामक और क्रोधी  होना किसी के लिएभी सही नहीं है !

23.मकड़ी-
मकड़ी अपने पेट में से रस  निकाल कर उससे जाला बुन  रही थी और जब चाहे उसे वापस पेट में निगल लेती थी ! इसे देख कर मुझे लगा की हर  इंसान अपनी दुनिया  अपनी भावना ,अपनी सोच के हिसाब से ही गढ़ता है और यदि वो चाहे तो पुराने को समेट  कर अपने पेट में रख लेना और नयावातावरण बना लेना भी उसके लिए संभव है !

24.भ्रंग कीड़ा-
भ्रंग कीड़ा एक झींगुर को पकड़ लाया और अपनी भुनभुनाहट से प्रभावित कर उसे अपने जैसा बना लिया ! यह देख कर मेने सोचा एकाग्रता और तन्मयता के द्वारा मनुष्य अपना शारीरिक और मानसिक कायाकल्प कर डालने में भी सफल हो सकता है !इस प्रकार भ्रंग भी मेरा गुरु बना !

सद् गुरू परमात्मा