Monday, 8 December 2014

कुछ उदास कुछ रूठे से वो।

आज है वो कुछ उदास उदास से
न जाने क्यों नही दे देते ये उदासी मुझे वो
आज है वो कुछ रूठे रूठे से
न जाने क्यों नही नही मान जाते अब वो
आज है वो कुछ अलग अलग से
न जाने क्यों नही हो जाते पहले जैसे वो
आज है वो कुछ बुझे बुझे से
न जाने क्यों नही हंस के दिखा देते अब वो

आँख खुलते ही ओझल हो जाते हो तुम,
ख्वाब बन के ऐसे क्यों सताते हो तुम…
मासूम सी मोहब्बत का बस इतना सा फसाना है
काग़ज़ की हवेली है बारिश का ज़माना है
क्या शर्त-ए-मोहब्बत है क्या शर्त-ए ज़माना है
आवाज़ भी ज़ख़्मी है ओर एक गीत भी गाना है
उस पार उतरने की उम्मीद बहुत कम है
कश्ती भी पुरानी है ओर तूफ़ान भी आना है
समझे या ना समझे वो अंदाज़-ए-मोहब्बत का
एक ख़ास को अपनी आँखो से एक शेर भी सुनाना है

गमों को भुलाने का एक सहारा ही सही,
मेरे मुरझाए हुए दिल को बहलाते हो तुम…
दूर तक बह जाते है जज़्बात तन्हा दिल के,
हसरतों के क़दमों से लिपट जाते हो तुम…
शीश महल की तरह लगते हो मुझको तो,
खंडहर हुई खव्हाइशों को बसाते हो तुम…
यादों की तरह क़ैद रहना मेरी आँखों मे,
आँसू बन कर पलकों पे चले आते हो तुम…
तुम्हारी अधूरी सी आस मे दिल ज़िंदा तो है
साँस लेने की मुझको वजह दे जाते हो तुम…
ना ज़मीन, ना सितारे, ना चाँद, ना रात चाहिए,
दिल मे मेरे, बसने वाला किसी दोस्त का प्यार चाहिए,
ना दुआ, ना खुदा, ना हाथों मे कोई तलवार चाहिए,
मुसीबत मे किसी एक प्यारे साथी का हाथों मे हाथ चाहिए,
कहूँ ना मै कुछ, समझ जाए वो सब कुछ,
दिल मे उस के, अपने लिए ऐसे जज़्बात चाहिए,
उस दोस्त के चोट लगने पर हम भी दो आँसू बहाने का हक़ रखें,
और हमारे उन आँसुओं को पोंछने वाला उसी का रूमाल चाहिए,
मैं तो तैयार हूँ हर तूफान को तैर कर पार करने के लिए,
बस साहिल पर इन्तज़ार करता हुआ एक सच्चा दिलदार चाहिए,
उलझ सी जाती है ज़िन्दगी की किश्ती दुनिया की बीच मँझधार मे,
इस भँवर से पार उतारने के लिए किसी के नाम की पतवार चाहिए,
अकेले कोई भी सफर काटना मुश्किल हो जाता है,
मुझे भी इस लम्बे रास्ते पर एक अदद हमसफर चाहिए,
यूँ तो ‘मित्र’ का तमग़ा अपने नाम के साथ लगा कर घूमता हूँ,
पर कोई, जो कहे सच्चे मन से अपना दोस्त, ऐसा एक दोस्त चाहिए!

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