बड़ा फैसला: अब आवासीय जमीन पर खोल सकेंगे स्कूल और अस्पताल
Dainikbhaskar.com | Dec 30, 2014, 09:44:00 AM IST
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जयपुर. शहरी क्षेत्रों में अब बिना लैंड यूज चेंज कराए आवासीय जमीन पर स्कूल या अस्पताल खोले जा सकेंगे। अभी इसके लिए आवासीय का संस्थानिक में लैंड यूज चेंज कराना अनिवार्य है। यह फैसला राज्य सरकार द्वारा गठित स्वायत्त शासन विभाग की स्टेट लेवल लैंड यूज चेंज कमेटी की पहली बैठक में सोमवार को लिया गया। कमेटी ने स्कूल और अस्पताल को आबादी के लिए परमिशेबल एक्टिविटी मानते हुए यह बड़ा फैसला किया है। कमेटी का तर्क है कि आवासीय आबादी में स्कूल-अस्पताल आदि खोलते वक्त भू उपयोग परिवर्तन कराने के लिए छह माह से एक साल तक लोग निकायों के चक्कर काटते रहते हैं। निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन और प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए यह छूट दी गई है। अब आवासीय जमीन पर ही स्कूल और अस्पताल के नक्शे पास किए जा सकेंगे। कमेटी की अध्यक्षता स्वायत्त शासन विभाग के प्रमुख सचिव मनजीतसिंह ने की।
40 फीट से चौड़ी सड़क होना जरूरी
स्टेट कमेटी के फैसले के बाद अब आवासीय क्षेत्र में स्कूल-अस्पताल खोलने के लिए मास्टर प्लान में निर्धारित साइज का भूखंड आवेदक के पास होना चाहिए। इसके अलावा भूखंड के आगे 40 फीट से चौड़ी रोड आवश्यक रखी गई है। इसके अलावा कोई बाध्यता नहीं रहेगी।
शहरी मास्टर प्लान में आ रहे गांवों में भी लैंड यूज जरूरी नहीं
वरिष्ठ नगर नियोजक आरके विजयवर्गीय के अनुसार स्टेट कमेटी ने शहरी मास्टर प्लान में शामिल किए गांवों में आधारभूत सुविधाओं के विकास के लिए भी बड़ा फैसला किया है। अब मास्टर प्लान में आ रहे गांवों की 500 मीटर की परिधि में स्कूल या अस्पताल खोलने के लिए कृषि का अकृषि या आवासीय का संस्थानिक में भू उपयोग परिवर्तन नहीं कराना पड़ेगा।
2 साल बाद बैठक, 55 केसों की सुनवाई
शहरी निकायों में लैंड यूज चेंज से जुडे़ केसों के निबटारे के लिए 2 साल बाद बैठक हुई। कमेटी ने 55 में से 40 प्रकरणों का निस्तारण कर मंजूरी दे दी। 8 प्रकरण अगली बैठक के लिए रैफर किए, 4 को तकनीकी कारणों से अस्वीकृत किया। इनको अंतिम मंजूरी के लिए नगरीय विकास मंत्री राजपालसिंह शेखावत के पास भेज दिया। कमेटी ने आवासीय, औद्योगिक, शैक्षणिक, होटल, व्यावसायिक प्रयोजनार्थ भू उपयोग परिवर्तन के तहत स्वीकृत किए प्रकरणों में एलईडी लाइट लगाना अनिवार्य किया।
एक और अध्यादेश, भूमि अधिग्रहण कानून बदला
रक्षा, सस्ते घर, बिजली, सड़क जैसे प्रोजेक्ट के लिए जमीन अधिग्रहण करना अब आसान हो जाएगा। इसके लिए भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव को कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है। ये बदलाव अध्यादेश के जरिए जारी होंगे। एक अनुमान के मुताबिक अधिग्रहण की अड़चनों के कारण सड़क, रेल, स्टील और खनन समेत विभिन्न सेक्टर की 20 लाख करोड़ रुपए की परियोजनाएं रुकी हुई हैं।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बताया कि भूमि अधिग्रहण कानून 2013 में 13 प्रावधान ऐसे थे जो उद्योग के खिलाफ थे। इसीलिए एक साल के भीतर इस कानून में बदलाव की जरूरत पड़ी। उन्होंने कहा कि संशोधन में औद्योगिक विकास और किसान हितों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की गई है। मुश्किल प्रावधानों को आसान किया गया है तो किसानों के मुआवजे का भी ख्याल रखा गया है।
इन प्रोजेक्ट के लिए 80 फीसदी लोगों की सहमति अब जरूरी नहीं
-राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा उत्पादन
-ग्रामीण इन्फ्रास्ट्रक्चर (बिजली, सड़क आदि)
-सस्ते आवास, गरीबों के लिए घर
-इंडस्ट्रियल कॉरिडोर
-सोशल इन्फ्रास्ट्रक्चर और इन्फ्रास्ट्रक्चर के पीपीपी प्रोजेक्ट। जमीन का मालिकाना हक सरकार के पास रहेगा।
इन प्रोजेक्ट के लिए सामाजिक और खाद्य सुरक्षा प्रभाव के अध्ययन की भी जरूरत नहीं होगी। प्रभावित लोगों को पुनर्वास का पैकेज भी मिलता रहेगा।
2013 के कानून में क्या था : पीपीपी प्रोजेक्ट के लिए 70 फीसदी और निजी कंपनियों के लिए 80 फीसदी लोगों की सहमति जरूरी थी। इसमें किसी सेक्टर विशेष को छूट नहीं दी गई थी। सोशल इंपैक्ट अध्ययन जरूरी था। खाद्य सुरक्षा प्रभावित न हो, इसके लिए खेती की ज्यादा जमीन अधिग्रहीत नहीं की जा सकती थी।
क्यों आई नौबत : उद्योग जगत के साथ कई राज्यों ने भी यूपीए सरकार द्वारा लागू कानून का विरोध किया था। जनवरी 2014 में कानून लागू होने के बाद अधिग्रहण लगभग ठप हो गया था। औद्योगिक गतिविधियों में तेजी लाने के लिए राज्य इसमें बदलाव चाहते थे। विरोध करने वालों में कांग्रेस शासित राज्य भी थे। सोशल इंपैक्ट के अध्ययन में वक्त लगने से अधिग्रहण वर्षों लटक सकता था।
क्या अधिग्रहण में तेजी आएगी : उम्मीद कम है। जब तक ये बदलाव कानून का रूप नहीं ले लेते तब तक असमंजस बना रहेगा। कंपनियां तब तक निवेश नहीं करेंगी। कांग्रेस ने विरोध का फैसला किया है। इससे बजट सत्र में बिल राज्यसभा में अटक सकता है।
किसान : उनके लिए मुआवजे में कोई बदलाव नहीं है। ग्रामीण इलाकों में बाजार दर की चार गुना और शहरों में बाजार दर की दोगुना कीमत मिलेगी। लेकिन विशेष परियोजनाओं के लिए जमीन अधिग्रहण में उनकी असहमति बेमतलब होगी।
उद्योग : इन्फ्रास्ट्रक्चर समेत चुनिंदा सेक्टर से जुड़ी कंपनियों की राह आसान होगी। दूसरे प्रोजेक्ट के लिए अब भी 80 फीसदी जमीन मालिकों की सहमति अनिवार्य।
सरकार : मोदी सरकार बिजनेस के हित में माहौल बनाना चाहती है। अध्यादेशों से यह साफ होता है। संसद के शीत सत्र के बाद वह बीमा में विदेशी निवेश सीमा बढ़ाने और कोल ब्लॉक की नीलामी पर भी अध्यादेश ला चुकी है।
कांग्रेस करेगी विरोध : प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि बजट सत्र में इसका विरोध करेगी। यूपीए सरकार ने यह कानून तीन साल के विचार-विमर्श के बाद तैयार किया था। विपक्ष के सुझाव भी जोड़े गए थे। मोदी सरकार लुके-छिपे रूप में इसमें परिवर्तन करना चाहती है। इसीलिये उसने संशोधन का विधेयक पिछले सत्र में पेश नहीं किया।
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