एक बादशाह अपने गुलाम से बहुत प्यार करता था ।
एक दिन दोनों जंगल से गुज़र रहे थे, वहां एक वृक्ष पर एक ही फल लगा था ।
हमेशा की तरह बादशाह ने एक फांक काटकर गुलाम को खाने के लिये दी। गुलाम को स्वाद लगी, उसने धीरे- धीरे सारी फांक लेकर खाली और आखरी फांक भी झपट कर खाना चाहता था।
बादशाह बोला, हद हो गई । इतना स्वाद ।
गुलाम बोला, हाँ बस मुझे ये भी दे दो। बादशाह से ना रहा गया, उसने
आखरी फांक खुदके मुह में ड़ाल ली। वो स्वाद तो क्या होनी थी, कडवी जहर थी।
बादशह हैरान हो गया और गुलाम से बोला, "तुम इतने कडवे फल को आराम से खा रहे थे और कोई शिकायत भी नहीं की ।"
गुलाम बोला, "जब अनगिनत मीठे
फल इन्ही हाथो से खाये और अनगिनत सुख इन्ही हाथो से मिले तो इस छोटे से कडवे फल के लिये शिकायत कैसी।"
मालिक मैने हिसाब रखना बंद कर दिया है, अब तो मै इन देने वाले हाथों को ही देखता हूँ । बादशाह की आँखों में आंसू आ गए । बादशाह ने कहा, इतना प्यार और उस गुलाम को गले से लगा लिया ।
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Moral- हमे भी परमात्मा के हाथ से भेजे गये दुःख और सुख को ख़ुशी ख़ुशी कबूल करना चाहिये । परमात्मा से शिकायत नहीं करनी चाहिये....
Monday, 8 December 2014
ईश्वर प्रेम।
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