Sunday, 16 October 2016

मेरे ईष्ट कर्म प्रधान है

आजकल सोशियल मीडिया पर एक ट्रेंड बहुत तेजी से चल पड़ा है, रावण के बखान..!!

वो एक प्रकांड पंडित था जी....उसने माता सीता को कभी छुआ नहीं जी....अपनी बहन के अपमान के लिये पूरा कुल दाव पर लगा दिया जी.....!!!

अरे भाई...माता सीता को ना छूने का कारण उसकी भलमनसाहत नहीं बल्कि कुबेर के पुत्र “नलकुबेर” द्वारा दिया गया श्राप था..!!!

कभी लोग ये कहानी सुनाने बैठ जाते हैं कि एक मां अपनी बेटी से ये पूछती है कि तुम्हें कैसा भाई चाहिये..

बेटी का जवाब होता है..रावण जैसा... जो अपनी बहन के अपमान का बदला लेने के लिये सर्वस्व न्यौछावर कर दे...

भद्रजनो..ऐसा नहीं है....
रावण की बहन सूर्पणंखा के पति का नाम विद्युतजिव्ह था..जो राजा कालकेय का सेनापति था..जब रावण तीनो लोको पर विजय प्राप्त करने निकला तो उसका युद्ध कालकेय से भी हुआ..जिसमे उसने विद्युतजिव्ह का वध कर दिया...

तब सूर्पणंखा ने अपने ही भाई को श्राप दिया कि, तेरे सर्वनाश का कारण मै बनूंगी..!!

कोई कहता है कि रावण अजेय था...
जी नहीं..

प्रभु श्री राम के अलावा उसे राजा बलि, वानरराज बाली , महिष्मति के राजा कार्तवीर्य अर्जुन और स्वयं भगवान शिव ने भी हराया था..!!

रावण विद्वान अवश्य था, लेकिन जो व्यक्ति अपने ज्ञान को यथार्थ जीवन मे लागू ना करे, वो ज्ञान विनाशकारी होता है...

रावण ने अनेक ऋषिमुनियों का वध किया, अनेक यज्ञ ध्वंस किये, ना जाने कितनी स्त्रियों का अपहरण किया..

यहां तक कि स्वर्ग लोक की अप्सरा “रंभा” को भी नहीं छोड़ा..!!

एक गरीब ब्राह्मणी, “वेदवती” के रूप से प्रभावित होकर जब वो उसे बालों से घसीट कर ले जाने लगा तो वेदवती ने आत्मदाह कर लिया..

और वो उसे श्राप दे गई कि तेरा विनाश एक स्त्री के कारण ही होगा..!!!

मै रावण को सिर्फ इसलिये अपना ईष्ट नहीं मान सकता कि वो एक ब्राह्मण था..

मेरे ष्ट कर्म प्रधान है..ना कि मेरी जाति प्रधान!!

अपने आराध्यों मे जाति ढूंढना छोड़िये..

“जरुरी है अपने जेहन मे राम को जिन्दा रखना,

क्योंकि सिर्फ पुतले जलाने से रावण नही मरा करते”

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