राधे-राधे मित्रो....
गोपाल जी के प्रति विश्वास की बहुत ही मँजुल कथा:-
एक औरत गोपाल जी की बडे भाव से सेवा करती थी; पर अचानक उसे कहीं बाहर जाना पडा, उसने सोचा कि कन्हैया को कहाँ साथ-साथ ले के धूप मे जाऊंगी तो उसने अपनी बहू से सेवा करने को कहा।
बहू ने कहा ठीक है बता दीजिए कैसै सेवा करनी है?
मैया बोली- "पहले कान्हा जी को मंगल गीत गा कर उठाना;फिर नहलाना; नहलाने के बाद उन्हे सजाना और फिर उनके आगे शीशा रखना; शीशे मे कान्हा का मुस्कान भरा हुआ मुख देखने के बाद उन्हे माखन खिलाना.....
मैया बताकर चली गयी और अगले दिन बहू ने ऐसा ही किया...
पहले मंगल गीत गाकर उठाया, फिर नहलाया, तैयार किया और कान्हा जी के आगे शीशा रख दिया, और कान्हा जी का मुख देखा, कन्हैया मुस्काए नहीं...
अब बहू ने सोचा कि शायद उसने कोई गलती कर दी।
बहू ने फिर गीत गाया; नहलाया; तैयार किया फिर शीशा रखा फिर कान्हा नहीं मुस्काए ..
फिर से बहू ने सब दोबारा किया..इस तरह बारह बार हो गया ....
अब तेहरवी बार बहू ने फिर गीत गाया, नहलाया, तैयार किया फिर शीशा आगे रखा और कान्हा का मुख देखा ....
अब कन्हैया ने सोचा कि अगर अब ना हँसा तो फिर गीत गाएगी; तैयार करेगी और माखन खिलाएगी नहीं....
...इसलिए कान्हा ने परीक्षा लेनी बन्द की और खिलखिला कर हँस पडे....
अब रोज बहू की सुबह कान्हा जी का मुस्कुराहट भरा मुख देखने के बाद ही होती।मैया लौट आयी...
मैया ने पूछा और गोपाल जी, बहू ने सेवा तो अच्छे से की ना...
कान्हा बोले, हाँ जी मैया...पर अब तो आप सेवा करोगी... बस नहलाने बहू को देना, इसी बहाने थोडा मुसकुरा तो लिया करूँगा।।
** डाॅ संजय कृष्ण "सलिल" जी द्वारा कथित॥**
शिक्षा:- कन्हैया तो अपने प्यारो के लिए कुछ भी करने को तैयार है; पर विश्वास भी तो दृढ हो;हम बुलाएगे तो कान्हा आएगे ही आएगे; जिस दिन ये दृढ विश्वास हुआ तो कन्हैया भी दूर नही रह पाएगें।।
।।राधे राधे।।
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