Tarpanam – हमारा जीवन हमारे माता पिता का दिया हुआ जीवन है| हमारी आत्मा ने हमारे पिता के वीर्य में शरण लिया, माता के गर्भ मेंस्थापित हुआ और गर्भवास पूरा होने पर शरीर के रूप में आत्मा इस धरती पर जीवन के प्राराब्ध को पूर्ण करने के लिए प्रकट हुई|
हमारे माता पिता ने हमारे दादा नाना दादी नानी आदि के द्वारा इस धरती पर जन्म लिया| इसी तरह हमारे दादा दादी नाना नानी आदि, हमारे पड़ दादा पड़ दादी पड़ नाना पड़ नानी आदि से अवतरित हुई| यही है वंश परंपरा और यही हैं हमारे पूर्वज, ancestors और हम इनके वंशज| हम अपनी वंश परंपरा के आज की कड़ी हैं जिसे हमारे बच्चे आगे बढ़ाएंगे|
हम अपने माता पिता और पूर्वजों के ऋणी हैं जो हमारे साथ किसी न किसी कर्मानुबंधन से जुड़े हैं| अपने माता पिता और पूर्वजों के पूर्व जन्मों के कुछ कर्म हमसे जुड़े हैं| Scientifically भी देखें तो हमारे parents के genes ने हमारा निर्माण किया और हमारे parents का उनके parents ने|
पितृ कौन हैं?
पितृ एक अत्यधिक विकसित पूर्वज अस्तित्व हैं जो धार्मिक रूप से इतने उच्च हैं की वे अपने वंशज के आत्मा के उत्थान का काम करते हैं| जीवन की समस्त खुशियों और शुभ फलों के लिये पितरों के आशीर्वाद की आवश्यकता रहती है| अपने पूर्वजों को कृतज्ञता से याद करना और उनकी मुक्ति के लिये कर्म करने से हम उनके ऋणों से मुक्त हो सकते हैं और जिस कर्मानुबंधन से जुड़े हैं, उससे मुक्त हो सकते हैं|
Tarpanam या पितृ तर्पण क्या है?
इन्ही स्वर्गवासी आत्माओं की शान्ति के लिए और उन्हें पितृ लोक से अगले लोकों में प्रस्थान के लिये पितृ तर्पण उनके वंशजों द्वारा किया जाता है| हिन्दू धर्म में ये एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, पर धार्मिक अनुष्ठान ना भी मानें तो ये किसी के द्वारा भी किया जा सकता है क्यूंकि आप अपने अपने दिवंगत पूर्वज, जिनके genes से आप बने हैं, उन्हें याद कर रहे हैं, उनसे जुड़ रहे हैं|
तर्पण या तर्पणम का अर्थ है वो अर्पण जो तृप्त करे, संतुष्ट करे| इस क्रिया के द्वारा हम देवों का, हृषी जनों का और पितरों के ऋण का आभार प्रकट करते हैं| जब हम अपने दिवंगत पितरों के लिए ये अनुष्ठान करते हैं तो वो पितृ तर्पण बन जाता है| जिस तरह यज्ञ और हवन आदि में अग्नि के द्वारा देवताओं का आह्वान किया जाता है, उसी प्रकार पितृ तर्पण में जल के द्वारा पितरों का आह्वान करके एक खास तरीके से छोड़ा जाता है जिससे पितरों को मुक्ति मिले|
Tarpanam या पितृ तर्पण कब करें?
पितृ तर्पण अमावस्या को किया जाता है| वैसे तो हर वर्ष श्राद्ध या महालया के दिन खास हैं, पर पितृ तर्पण हर अमावस्या को किया जा सकता है| अमावस्या के दिन सूर्य और चन्द्र एक साथ होते हैं – सूर्य आत्मकारक हैं और चन्द्र पोषण के कारक| पञ्च महाभूत – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश – इनका प्रभाव उस दिन भूलोक पर खास होता है| और उस दिन जल तत्व के द्वारा हम अपने पूर्वजों को भोग लगाकर संतुष्ट कर सकते हैं| पितृ लोक चंद्रमा के ठीक ऊपर अनदेखा लोक है जो अमावस्या के दिन सूर्य चन्द्र के सामीप्य से लौकिक हो उठता है|
और और ऐसा ही एक खास दिन आ रहा है – 2 अगस्त 2016 मंगलवार को| ये दिन कृष्ण अमावस्या का दिन है| सूर्य और चन्द्र इस दिन कर्क राशी में शनिदेव के पुष्य नक्षत्र में रहेंगे जो इस दिन को खास बनायेंगे| इसे तमिल में आदि अमावस्या और मलयालम में कर्किडा वाव कहते हैं|
इस दिन का पितृ तर्पण हमारे या हमारे कुल में किसी के जाने अनजाने में किये गए कर्म – जो पारवारिक श्राप के रूप में जीवन में दुःख का कारण बनती हैं – उन कर्मों से हमें मुक्ति दिला सकती हैं| हमारे पूर्वज उस दिन हमारे Tarpanam द्वारा दिये गये अन्न जल को सूक्ष्म रूप से प्राप्त कर संतुष्ट होकर जब प्रकाश की तरफ जाते हैं तो हमें पूरा आशीर्वाद देकर अग्रसर होते हैं| इस दिन पूर्वज पृथ्वी पर अपने वंशजों से अर्पण – Tarpanam के रूप में स्वीकार करने आते हैं और तृप्त होकर आशीर्वाद देकर जाते हैं|
Tarpanam या पितृ तर्पण कैसे करें?
अगर आपके पास समय है तो किसी कर्म कांडी पुरोहित के द्वारा तर्पण किया जा सकता है| पर आज के भाग दौड़ के जीवन में और working day होने की वजह से शायद हर एक के लिये ये पॉसिबल ना हो| पर इसका मतलब ये नहीं की आप अपने पितरों का Tarpanam ना कर सकें|
जिस युग हम जी रहें हैं वो कलियुग के साथ नामयुग भी है| इस युग में कर्म काण्ड से ज्यादा महत्वपूर्ण है – भाव| सिर्फ नामजप से कलियुग में मुक्ति पायी जा सकती है| इस युग में भाव से आप जो कर्म करेंगे वो पूरी तरह स्वीकार्य है| Tarpanam या पितृ तर्पण भी आप खुद कर सकते हैं| आइये आज Tarpanam का एक सरल तरीका समझते हैं जो स्त्री या पुरुष कोई भी अपने पूर्वजों के लिये कर सकता है|
ये Tarpanam या पितृ तर्पण आप अपने घर की छत पर, किसी बालकनी में, घर के पिछले हिस्से में या किसी खुली जगह पर कर सकते हैं| कमरे के अन्दर या घर के मंदिर के आगे नहीं करना है|
Tarpanam के लिये पदार्थ जो आपको चाहिये|
ताम्बा, कांसा या पीतल का लोटा (स्टील या प्लास्टिक का नहीं होना चाहिये)
थोड़े उबले हुए चावल
काले तिल थोड़े
दूर्वा घास (दर्भा या कुशा घास जो आपको पूजा स्टोर या लोकल मंदिर में भी मिल जाती है – यदि ना भी मिले तो भी तर्पण किया जा सकता है)
मिटटी का दिया बाती तिल के तेल के साथ
अगरबत्ती या धूप
एक बड़ी थाली या परात
केले का पत्ता थोडा बड़ा टुकड़ा यदि मिल जाये| नहीं मिले तो थाली या परात ही use करें|
Tarpanam अनुष्ठान
बैठने के लिये चटाई, mat या कोई धुली साफ़ चादर पर cross leg बैठ जायें| यदि cross leg ना बैठ सकें तो किसी छोटी स्टूल पर जैसे हो सके, वैसे बैठ जायें| यदि ना बैठ सके तो एक ऊंची स्टूल रख कर उस पर tarpanam कर सकते हैं| जगह को साफ़ करके दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके बैठना है|
सबसे पहले लोटे में गंगा जल डालें फिर शुद्ध जल से भर दें| (गंगा जल ना मिले तो सिर्फ शुद्ध जल ले लें) अब दिया और अगरबत्ती/धूप जला दें|
अब लोटे पर सीधा हाथ पहले, फिर उसके ऊपर उल्टा हाथ रखकर पितरों का आवाहन करना है| यदि हो सके तो ये मंत्र बोलें: ॐ आगच्छन्तु मे पितरः इमं गृह्णन्तु जलान्जलिम| यदि मन्त्र बोलने में कठिनाई हो तो दिल से अपने पितरों को बुलायें की हे मेरे पूर्वज और पितृ गण, आप कृपा करके पधारें और मेरा अनुष्ठान स्वीकार करें| पितरों का आवाहन जल में किया गया है, लोटे को दिये और अगरबत्ती/धूप से तीन आरती दे कर दिये को right साइड में अपने सामने रख दें|
अब दूर्वा है तो केले के पत्ते पर (जो थाली में रखनी है) या थाली/परात पर तीन दूर्वा सीधी (vertical NOT horizontal) रखें| दूर्वा नहीं है तो कोई बात नहीं|
अब उबले चावल में काले तिल मिलाकर एक मुठ्ठी लेकर उसका एक गोला बनायें| ये आपके मात्रु तरफ के पितरों के लिए पहला अर्पण है| अगर आपकी माता या पिता जीवित हैं तो अर्पण में उन्हें शामिल नहीं करना है, सिर्फ माता की तीन पीढ़ियों को शामिल करना है|
यदि माता या पिता का स्वर्गवास हो चुका हो, तो उन्हें पहले संबोधित करना है| दोनों हाथों में चावल तिल का गोला लेकर अपने छाती के पास लगायें और दिल से, पूरे भाव से मन में धारणा करें “ये पहला अर्पण मैं (अपनी माता और) अपनी माता की तीन पीढ़ियों को अर्पित करता/करती हूँ| हे (माँ और) माँ की तीन पीढ़ी के आदरणीय पूर्वज गण, अपने वंशज से इस अर्पण को स्वीकार कर मुझे कृतार्थ करें|” इस भाव से तिल चावल के गोले को पहली दूर्वा पर रख दें|
अब उलटे हाथ में लोटा पकड़ें (लोटे से शुद्ध चम्मच से भी जल ले सकते हैं) और जल की धार बना कर सीधे हाथ की अंजुली से तिल चावल के गोले को जल चढ़ाना है| जल इस तरीके से प्रवाहित करना है की सीधे हाथ की तर्जनी ऊँगली (index finger) और अंगूठे (thumb) के बीच से जल प्रवाह हो और तिल चावल के गोले पर गिरे| पूरी भावना से तथा पूरे मन से धारणा करनी है की “हे (माँ और) माँ की तीन पीढ़ी के आदरणीय पूर्वज गण, अपने वंशज से इस अन्न जल अर्पण की उर्जा को ग्रहण करें, प्रकाश की तरफ अग्रसर हों और मुझ पर अपनी पूरी कृपा करके मुझे आशीर्वाद दें”
इसके बाद दोनों हाथों में चावल तिल का दूसरा गोला लेकर अपने छाती के पास लगायें और दिल से, पूरे भाव से मन में धारणा करें “ये दूसरा अर्पण मैं (अपने पिता और) पिता की तीन पीढ़ियों को अर्पित करता/करती हूँ| हे (पिताजी और) मेरे पिता की तीन पीढ़ी के आदरणीय पूर्वज गण, अपने वंशज से इस अर्पण को स्वीकार कर मुझे कृतार्थ करें|” इस भाव से तिल चावल के गोले को दूसरी दूर्वा पर रख दें|
अब उलटे हाथ में उसी तरह लोटा पकड़ कर सीधे हाथ से जल की धार चढ़ायें| पूरी भावना से तथा पूरे मन से धारणा करनी है की “हे (पिताजी और) पिता की तीन पीढ़ी के आदरणीय पूर्वज गण, अपने वंशज से इस अन्न जल अर्पण की उर्जा को ग्रहण करें, प्रकाश की तरफ अग्रसर हों और मुझ पर अपनी पूरी कृपा करके मुझे आशीर्वाद दें”
अब जितना तिल चावल बचा है उसका आखिरी गोला बना कर, पहले की तरह छाती से लगा कर पूरे भाव से धारणा करें की “अब तक के समस्त पूर्व जन्मों के मेरे समस्त पितृ गण, जाने या अन्जान पूर्वज, अपने वंशज से इस अर्पण को स्वीकार कर मुझे कृतार्थ करें|” इस भाव से तिल चावल के गोले को तीसरी दूर्वा पर रख दें|
इसके बाद जल प्रवाहित करें| पूरे मन से धारणा करें की “अब तक के समस्त पूर्व जन्मों के मेरे समस्त पितृ गण, जाने या अन्जान पूर्वज, अपने वंशज से इस अन्न जल अर्पण की उर्जा को ग्रहण करें, प्रकाश की तरफ अग्रसर हों और मुझ पर अपनी पूरी कृपा करके मुझे आशीर्वाद दें”
जलते हुए दीये और अगरबत्ती से इस अर्पण की तीन आरती करें| खड़े होकर दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करें और पितरों को याद करते हुए क्षमा प्रार्थना करें की “हे मेरे पितरों, जाने अनजाने में मुझसे या मेरे कुल में किसी से कोई गलती, कोई अपराध हुआ हो तो मैं भरे मन से क्षमा प्रार्थी हूँ, क्षमा करें और तृप्त होकर आशीर्वाद दें|”
इसके बाद अर्पण को थोड़ी देर वहीँ रहने दें| कोई जानवर या पक्षी, विशेषकर कौव्वा इस अर्पण को ग्रहण करे तो अच्छा माना जाता है, ना भी करे तो कोई बात नहीं| अगर आपने अपने छत पर ये अर्पण किया है तो शाम तक वहीँ रहने दें अन्यथा थोड़ी देर के बाद पारात के जल, चावल तिल के गोलों को किस पेड़ के नीचे डाल दें की किसी का पैर ना पड़े| आपका पितृ तर्पण सम्पूर्ण हुआ|
तर्पण के समय यदि लोटा गिर जाये तो जल फिर भर लें, दिया बुझ जाये तो फिर जला लें, कहने का मतलब किसी तरह का वहम ना करें, ये मन के भाव की क्रिया है, अपने भाव पर ध्यान रखें| इस पितृ तर्पण को आनेवाली कृष्णा अमावास्या के दिन अपने हाथों से करें और तृप्त पितरों के आशीर्वाद के प्रार्थी बनें|
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