Saturday, 6 September 2014

Doctors

((एक Doctor का दर्द))))}}}}●●●
मन तो मेरा भी करता है मॉर्निग वॉक पर
जाऊं मैं,
सुबह सवेरे मालिश करके थोड़ी दंड लगाऊं मैं,
बूढ़ी मॉ के पास में बैठूं और पॉव दबाऊँ मैं
लेकिन मैं इतना भी नही कर पाता,
क्योंकि मैं वो मानव हूँ जो मानव
नही समझा जाता ******************************
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हमने बर्थ डे की पिघली हुई
मोमबत्तियॉ देखी है,
हमने पापा की राह
तकती सूनी अंखियाँ देखी हैं,
हमने पिचके हुए रंगीन गुब्बारे देखे हैं,
पर बच्चे के हाथ से मैं केक नही खा पाता,
क्योंकि मैं वो मानव हूँ जो मानव
नही समझा जाता ******************************
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निज घर करके अंधेरा सबके दिये जलवाये हैं,
कहीं सजाया भोग कहीं गोवर्धन पुजवायें हैं,
और भाई बहिन को यमुना स्नान करवाये हैं,
पर तिलक बहिन का मेरे माथे तक नही आ
पाता,
क्योंकि मैं वो मानव हूँ जो मानव
नहीं समझा जाता
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हमने ईद दिवाली दशहरा खूब मनाये हैं,
रोज निकाले जुलूस और गुलाल रंग बरसाए हैं,
ईस्टर,किर्समस,वैलेंटाइन और फ्राइडे मनाये हैं,
पर मैं कोई होलीडे संडे नही मना पाता,
क्योंकि मैं वो मानव हूँ जो मानव
नहीं समझा जाता
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घनी रात सुनसान राहों पर जब कोई जाता है,
हर पेड़ पौधा भी वहॉ चोर नजर आता है,
कड़कड़ाती ठंड में जब रास्ता भी सिकुड़
जाता है,
लेकिन Doctor उसी वक़्त घर जाता है,
क्योंकि यह वो मानव है जो मानव
नही समझा जाता
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नहीं चाहता मैं कोई सम्मान
दिलवाया जाय,
नही चाहता हमें सिर आँखों पर बैठाया जाय,
चाहत है बस हफ्ते में एक छुट्टी मिल जाय,
बस सन्डे को कोई patient ना बुलाये।
हमारी तरफ भी आज के युग मे कोई प्यारी नजर उठ
जाय,
हम भी मानव हैं और हमें बस मानव समझा जाय
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